आपदा प्रबंधन क्या है। परिभाषा, प्रमुख तत्व, योजना, भूमिका, उपसंहार


सभी सजीव प्राणियों में मनुष्य सर्वश्रेष्ठ प्राणी है। लेकिन फिर भी प्राकृतिक विभीषिका को वह रोक नही सकता है। प्राकृतिक आपदाएं उतना ही पुरातन है, जितना कि स्वयं प्रकृति का निर्माण।

इसलिए प्राकृतिक आपदाएं घटित होना कभी बंद नही होंगे। कभी समय अंतराल पर, तो कभी अप्रत्याशित रूप में प्रकट होते रहेंगे। जैसे कि मानसूनी समय पर बाढ़ आना सामान्य है।

वही सुनामी, चक्रवात, भूकंप आने का कोई निश्चित समय नही है। ये विनाशकारी त्रसादी मानव संसाधन को बहुत नुकसान पहुंचाते है।



हालाँकि, कुछ दशकों से हमने विज्ञान और तकनीक क्षेत्र में इतना विकास कर चुके हैं, कि आज उचित रणनीतियों द्वारा इन विनाशों में बहुत हद तक कमी करने में सफल हुए हैं।

इन्हीं आपदाओं के जोखिमों से निपटने के लिए अपनाए गये रणनीति को ही आपदा प्रबंधन कहते हैं। तो चलिए आपदा प्रबंधन को विस्तार से समझने की कोशिश करते हैं।


1. परिभाषा

हम आपदा प्रबंधन में अतीत के घटित आपदाओं से सबक लेकर, भविष्य में होने वाले संभावित क्षति को कम करने की कोशिश करते है। अतः हम कह सकते हैं, कि

प्राकृतिक आपदाओं के विनाशकारी प्रभाव से मानव समुदाय के क्षति रोकने के लिए उठाए गए कदमों को आपदा प्रबंधन कहते है। आपदा प्रबंधन के अंतर्गत राहत कार्य, पुनर्वास, जन-जागरूकता, और बचाव कार्य आदि सम्मिलित है।


2. आपदा प्रबंधन के प्रमुख तत्व

आपदाएं चाहें प्राकृतिक हो या मानव निर्मित, ये मनुष्यों पर भारी नुकसान पहुँचाने की क्षमता रखते है। लेकिन इनसे होने वाले नुकसानों को निम्न चार तत्वों पर काम करके, कम किया जाना संभव हुआ है।

इन चारों तत्वों द्वारा विभिन्न भूमिकाओं का क्रियान्वयन होता है, जिनकी चर्चा हमनें नीचे किया है। हालाँकि इन प्रबंधनों का तरीका आपदाओं के प्रकृति पर निर्भर करता है।

क्योंकि सभी आपदाएं एक दुसरे के कई मामलों में भिन्न है, और निपटने का तरीका भी अलग-अलग होते है। लेकिन जो आधारभूत बिन्दुएँ एक सामान ही है।


A. तैयारी(Preparedness)

यंहा तैयारी से तात्पर्य है कि, किसी भी त्रसादी घटित होने से पूर्व, संभावित नुकसानों को कम करते के लिए उपयुक्त कदम उठाने से है।

जैसे कि अगर किसी क्षेत्र में प्रति वर्ष भारी वर्षा के कारण बाढ़ जैसी परिस्थितियाँ उत्पन्न होते रहते है, तो हम अपने पूर्व तजुर्बे और नुकसान का आकलन करके भविष्य में उन क्षतियों को कम करने के लिए जो भी कदम उठाते है। वही तैयारी कहलाता है।

यानी कि तैयारी से तात्पर्य, किसी जोखिम से पूर्व हमारे लड़ने के सक्षमता और सामर्थ्यता से है। तैयारी कई प्रकार से किया जाता है। प्रभवित क्षेत्रों पर लोगों को नुक्कड़ नाटक या डिजिटल माध्यमों से जागरूक करना और प्रशिक्षण करना होगा।

लोगों को इमरजेंसी संसाधनों का भंडारण का तरीका सिखाया जाए, जिअसे कि अनाज, टोर्च-लाइट, कपड़े, दवाइयां आदि अतिआवश्यक वस्तुओं को बेहतर सदुपयोग कर सके।

रेस्क्यू टीम को हमेशा कठिन से कठिन परिस्थियों में काम करने लायक तैयार किया जाना चाहिए। इनका सूचनातंत्र सुदृढ़ रहे, जो प्रभवित क्षेत्रों को हमेशा सतर्क रखेगा।

इसके अलावा आपदाओं की संभावना, आवृत्ति और गंभीरता को पहचानने के बाद कमजोर बिन्दुओं को चिन्हित करके बेहतर रणनीति बनाना चाहिए।


B. अनुक्रिया(Response)

जैसे ही कोई आपदा आती है, प्रतिक्रिया चरण शुरू होता है। यह चरण आपदा घटित होने के दौरान शुरू किया जाता है। इस चरण के दौरान राहत कार्य पर बहुत जोर दिया जाता है, जिसके अंतर्गत सरकार द्वारा निर्देशित नियमों का अनुसरण होता है।

लोगों को प्रभावित इलाकों से दूर करके सुरक्षित स्थान पर भेजा जाता है। जंहा पर इनके आश्रय, भोजन और चिकित्सा देखभाल जैसी आवश्यक आवश्यकताओं को प्राथमिकता दी जाती है।

संसाधनों का बराबर हिस्सेदारी सभी को मिले। ताकि सभी लोगों को समान सुविधायें प्राप्त हो। अक्सर इन विपत्तियों की वजह से लोग बहुत कुछ खोते हैं।

कोई अपने घरों को खोता है तो कोई अपने परिवारों से हमेशा के लिए बिछुड़ता है, जिस कारण इन्हें चिंता, निराशा, और तनाव से गुजरना पड़ता है। इन लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर विशेष ख्याल रखने की व्यवस्था होना चाहिए।


C. पुनरुथान(Recovery)

आपदाएं रुक जाने के बाद, लोगों के जीवन को वापस पटरी में लाने के लिए पुनरुथान कार्य किया जाता है। विकसित देश हो या विकासशील, पुनरुथान में काफी समय लग जाता है। इसमें कई बार वर्षों लग जाते है।

यह आपदा प्रबंधन का सबसे लंबा और सबसे चुनौतीपूर्ण चरण है। पुनर्प्राप्ति न केवल बुनियादी ढांचे के पुनर्निर्माण के बारे में है बल्कि प्रभावित लोगों में सामाजिक, आर्थिक और मनोवैज्ञानिक स्थिरता बहाल करने के बारे में भी है।

गुम हुए लोगों का खोजबीन कर बिछड़े परिवार से मिलाया जाता है। मृतक जनों का उचित क्रियाक्रम संस्कार द्वारा विदाई दिया जाता है। आपदाओं के पश्चात क्षतिग्रस्त जर्जर मकानों, इमारतों, जो ठहरने लायक उचित नही होते हैं, उन्हें सुरक्षा कारणों से गिराया जाता है।

दूसरी ओर, संचार एवं परिवहन सेवाएं विकास का रीढ़ है। इस कारण इन सेवाओं को जितना जल्दी हो सके, उतना ही जल्दी शुरू कर दिया जाता है। आपदा उपरान्त अधिकतर वस्तुएं बर्बाद होते है।

इसलिए सरकार को चाहिए कि लोगों को वित्तीय सहायता प्रदान किया जाए। इससे लोग को जीवनयापन में थोड़ा सहूलियत मिलेगा। साथ ही लोगों को रोजगारपरक अवसर भी मुहेया कराया जाय।

आपदाएं, अपने साथ कूड़ा-कचरा और बीमारियाँ छोड़कर जाते है। बगैर स्वास्थ्य सुविधाओं के देश प्रगति नही कर सकता। इसलिए जल्द से जल्द स्वास्थ्य सेवाएं बहाल करना आवश्यक है।


D. रोकथाम(Prevention)

रोकथाम का अर्थ यह नही कि, हम इन आपदाओं को नियंत्रित करने की सोच रहे, बल्कि रोकथाम से अर्थ जोखिम मानचित्रण, प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली, शिक्षा और जागरूकता बढ़ाने वाले अभियान, बेहतर इमारत निर्माण और आपातकालीन योजना बनाना और तैयारी शामिल हैं।

जैसे कि, संगवेदनशील क्षेत्रों पर बस्ती बसने पर प्रतिबन्ध लगाना और वैकल्पिक जगह उपलब्ध कराना, आपदा प्रभावित क्षेत्रों में जोखिम आकलन करके आपदारोधी भवन निर्माण कराना, और विपदाओं से सबक लेकर भविष्य के क्षति को इस तरह के नुकसान ना हो इसके लिए भी ठोस कदम उठाना आदि शामिल है।

इसके अलावा रोकथाम के प्रयासों में तकनीकी की सहायता से निरंतर नए खोजें जारी रखें।जो कि हमें आपदाओं से निबटने के लिए बेहतर रूप से तैयार रखें। तैयार रहना किसी भी आकस्मिक योजना का एक अनिवार्य हिस्सा है।


3. आपदा प्रबंधन में सरकार की भूमिका

पीड़ित परिवारों के क्षति का आंकलन करके उन्हें राशि देकर सहयोग करना चाहिए ताकि उनके जीवन की सामान्य जरूरतों की पूर्ति हो जाए। इसके अलावा कम ब्याज में लोन सुविधा उपलब्ध करा जाए।

आपदा प्रभावित इलाकों में जांच समिति गठित किया जाए, और इन संकटों से हुए क्षति को कम करने के तरीके खोजे जाएँ, जिससे भविष्य में नुकसान को कम किया जा सके।

क्षतिग्रस्त सड़कों, हस्पतालों, स्कूलों जैसे जरुरी इन्फ्रास्ट्रक्चर का पुनरुत्थान जल्द से जल्द किया जाए। ताकि सेवाएँ पुनः बहाल हो।

प्रभावित इलाकों के लिए सरकार अर्ली वार्निंग सिस्टम बनाये, जिससे आपदा आने की आशंका से पूर्व लोगों को सायरन या एसएमएस द्वारा तत्कालीन सुरक्षा नियमों की जानकारियां पहुँचाया जाएँ।

सरकार आपदा राहत कोष की व्यवस्था करें ताकि आपातकालीन परिस्थितियों में अनुदान की कमी बिलकुल भी ना हो।

4. छात्रों का आपदा प्रबंधन में योगदान

आपदा प्रबंधन में छात्रों की भूमिका आपदा से पहले और बाद के कार्यों को बखूबी निभा सकते है। क्योंकि आमतौर पर 20 – 25 वर्ष तक के युवाओं को छात्र की श्रेणी में रखा जाता है।

परन्तु उन तरीकों को सीखने का दवाब नही बनाना है, जिन कार्यों को क्रियान्वयन करने के लिए विशेषज्ञता और परिपक्वता का अधिक जरुरत हो।

लेकिन हमें स्मरण रहे कि, आपदाओं जैसे विपत्तियों से निपटने के लिए दुसरे के भरोसे हाथ-पर-हाथ धरे बैठे नही रह सकते हैं। हमें यथासंभव एकदूसरे की मदद लेना भी चाहिए और करना भी चाहिए।

सोशल मीडिया, पोस्टर तथा विभिन्न गैर सरकारी संगठनों के सहयोग द्वारा स्थानीय स्तर पर लोगों में जोखिम से पूर्व सभी संभावनाओं से जागरूक करा सकते हैं।

पीड़ित परिवारों के खोये सदस्यों को खोजने में मदद करके, स्वच्छ भोजन और पानी की व्यवस्था किया जाना चाहिए। बुजुर्गों, विकलांगों को सुरक्षित स्थान पहुंचाने में मदद करना चाहिए।

जोखिमग्रस्त क्षेत्रों की पहचान करके स्थानीय लोगों को सुरक्षित क्षेत्रों में पंहुचाने में मदद कर सकते हैं। इस जानकारी का उपयोग प्राकृतिक आपदाओं के समय लोगों को सुरक्षित क्षेत्रों में ले जाने में आसानी होगा।

प्राकृतिक आपदाओं में धन के बिना रहत कार्य चलाना असंभव है। इन परिस्थितियों में, छात्र डोनेशन एकत्रित करके पीड़ित लोगों को वितरित करने के लिए भोजन, पानी और कंबल , तिरपाल जैसी आपातकालीन सामानों की व्यवस्था आसानी से कर सकते हैं।

इसके अलावा छात्र स्थानीय अधिकारियों के साथ काम में सहयोग करके बुजुर्ग, विकलांग और कम आय वाले परिवार की मदद कर सकते हैं। इसी तरह समाज में जागरूकता बढ़ाने के लिए कई स्कूलों, कॉलेजों तथा विभिन्न विश्वविद्यालयों ने पाठ्यक्रमों में बदलाव करके आपदा प्रबंधन को शामिल किया है।

इन पाठ्यक्रमों द्वारा आपदाओं की प्रकृति को समझना, राहत और बचाव कार्य को क्रियान्वयन करने के तरीके, समाज में जागरूकता लाना, विभिन्न तकनीकों का इस्तेमाल, गैर सरकारी संगठनों से तालमेल बैठना जैसे कई क्षेत्रों को समझने का अवसर मिलता है।

सामान्यत सरकारी आदेश या तो हिंदी अथवा इंगरेजी में रहते है, जिन्हें कई ट्राइबल लोगों के लिए समझपाना मुश्किल प्रतीत होता है। छात्र इन सरकारी निर्देशों को स्थानीय भाषी लोगों के अनुरूप ट्रांसलेट करने में मदद कर सकता है।


5. आपदाओं के प्रबंधन में स्कूलों की भूमिका

आजकल सभी स्कूल भवनों का निर्माण, आपातकालीन परिस्थितियों में निपटने के उद्देश्य से किया जाता है।

इसलिए कई बार आपने समाचारों में सुनते है कि, जोखिम परिस्थितियों में झोपड़ियों अथवा कच्चे मकानों के परिवारों को स्कूल भवन में स्थिति नियंत्रण होने तक ठहराया जाता है। इसलिए स्कूल भवन आज भी आश्रय स्थल है।

इनका इस्तेमाल सेंट्रल हब के तौर पर किया जाता है, जिसे मेडिकल व्यवस्था, खाने-पीने की सुविधाओं को इमरजेंसी समय में स्टोर करके रखने में सुविधा होता है। यंहा मेडिकल सुविधा, पुलिस प्रशासन, के लिए भी बहुत उपयोगी होता है।


6. आपदा प्रबंधन में पुलिस की भूमिका

संकट के समय पुलिसकर्मियों का कार्य जटिल और बहुआयामी होता है। इन्हें विधि व्यवस्था बनाये रखने के लिए कई काम सौपें जाते हैं।

चलिए इनके कुछ चुनिंदा भूमिकाओं को समझते है:- पुलिस कर्मियों का पहला प्राथमिकता है कि लोगों को सुरक्षित स्थान पहुचाएं और लोगों के संपत्तियों की सुरक्षा सुनिश्चित करें।

जो लोग प्रभावित क्षेत्रों से निकलने में असमर्थ होंगे, उन लोगों को खतरे से बाहर निकालने में पुलिस को मदद करना होगा। त्रासादियों के पश्चात अक्सर लूटपाट, चोरी और धोखाधड़ी सहित कई आपराधिक गतिविधियों में वृद्धि होती है।

इन परिस्थितियों में पुलिस बल कानून को सख्ती से लागू करके अमानवीय हरकतों को रोकें, जिससे नागरिक सुरक्षित महसूस करें।

परिवहन सेवाएँ दुरुस्त ना होने से एम्बुलेंस, अग्निशमन, ऑक्सीजन सप्लाई जैसे आपातकालीन वाहनों के आवागमन बाधित होते है। यह पुलिस का कर्तव्य है कि वह यातायात को निर्देशित करे ताकि आपातकालीन वाहन बेरोकटोक गुजर सकें।

सरकारी तथा गैर सरकारी संगठनों में तालमेल बनाने में पुलिस मदद करता है, जो राहत अभियान के अच्छी तरह से समन्वित और कुशलपूर्वक बनाने में सफल होते हैं।

इन सबके अलावा पुलिस प्रभावित इलाकों के नुकसान का आकलन करके, उच्च अधिकारियों को रिपोर्ट करते है। कई बार शरणार्थी शिविरों में भी सभी को सुरक्षित रखने का पूर्ण जिम्मेवारी पुलिसकर्मियों के कंधे पर ही होता है।


7. आपदा प्रबंधन में मीडिया की भूमिका

प्राकृतिक आपदाओं जैसी दुखद घटनाओं की जानकारियों को लोगों तक पहुंचाने का काम रिपोर्टरों का होता है। इन आपदा की स्थिति में रिपोर्टरों का प्राथमिक कर्तव्य है कि वे यथाशीघ्र जनता को पूरे परिस्थिति पर विश्वसनीय स्रोतों से जानकारियां प्राप्त करके लोगों तक पहुंचाए।

साथ ही सरकारी अधिकारियों द्वारा लिए गये निर्णयों, क्षति का आकलन, राहत सेवा की स्थिति पर विस्तार रिपोर्ट जनता के समक्ष प्रस्तुत करें।

ठीक वंही सरकार अगर लोगों को मदद पहुंचाने में असमर्थता जताए, तो सरकार से सवाल-जवाब करें, और देरी से राहत कार्य शुरू करने पर उनसे जवाब मांगे।

रिपोर्टर जब इन त्रासदियों पर कवरेज करें, तो यह हमेशा ध्यान दे कि वेवजह ब्रेकिंग रिपोर्टिंग के चक्कर में आपातकालीन सेवाओं में बाधा ना डाले। अक्सर देखा गया है कि, टीआरपी के लालच में अपने सीमाओं को पार कर जाते हैं।

जिससे राहतकर्मियों को काम करने में कई असुविधाओं का सामना करना पड़ता है। ऐसा भी पाया गया है कि, कई बार रिपोर्टर एक ही खबर को कई तरीकों से ब्रेकिंग न्यूज़ की तरह दर्शकों को दिखाते है, जिस कारण ना चाहते हुए भी त्रासदी को लेकर लोगों में भय का माहौल बनाया जाता है।

पत्रकार इस तरह के खबरें लोगों में ना फैलाए । साथ ही, रिपोर्टिंग करते वक़्त मीडियाकर्मी आपदा पीड़ित परिवारों से सम्मानपूर्वक व्यवहार करें, और अनुचित प्रश्न पूछकर कवरेज प्रदान करने से बचें।

प्रभावित इलाकों के बेदखल हुए परिवारों और पालतू जानवरों के लिए घरों, और स्कूलों के अस्थायी पुनर्निर्माण में धन एकत्र करके पुनः मदद किया जा सकता है। जैसे कि तिरपाल, औषधि, नौकरी या व्यवसाय खोये लोगों को नए रोजगारपरक कार्यों को खोजने में सहायता भी किया जाना संभव है।


8. आपदाओं के दौरान नागरिकों की जिम्मेदारियां

अगर एक इंसान दुसरे इंसान की मदद करना छोड़ दे, तो हम किसी भी त्रासदियों से उबर नही सकते हैं। कोई भी काम इंसान ही करते है, रोबोट्स नही। इसलिए इन संकट के घड़ी में नागरिकों की भूमिका बहुत होता है।

आपात सस्थितियों से लड़ने के लिए हर परिवार के पास अपना एक योजना होनी चाहिए। जिसमें निकलने का मार्ग, भोजन स्टॉक, जाना कंहा है ? जैसे कई रणनीतियां शामिल होना चाहिए।

लोगों को किसी भी चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों से निपटने के लिए भोजन, पानी, दवा और प्राथमिक उपचार की सामग्री का अग्रिम रूप से स्टॉक बनाकर रखना चाहिए। हमेशा अपने साथ टॉर्च लाइट, बैटरीज भी साथ रखना होगा।

आपदाओं का प्रभाव कई महीनों सालों तक होता है। इन स्थितियों में खुद को तैयारी और बेहतर प्रबंधन की बहुत आवश्यक है। आपदाओं के दौरान, जो लोग सबसे कमजोर हो, जिनमें बुजुर्ग, बीमार व्यक्ति, विकलांग और छोटे बच्चे को पहले सुरक्षित स्थान पहुँचाना चाहिए।

स्वयंसेवा द्वारा भी अन्य पड़ोसियों का भी सहायता करने में मदद करना चाहिए, और दूसरों के सहायता के लिए भी प्रेरित करना चाहिए।

सबसे ख़ास बात कि, हमें इन संकटों के समय हमेशा अपने पासपोर्ट, प्रमाण पत्र और बीमा पॉलिसियों, जमीन, नौकरी के कागजातों को अग्निरोधक और जलरोधक बक्से में सुरक्षित रखना चाहिए।


9. आपदाओं के दौरान नर्स की भूमिका

जब भी कोई संकट आता है, तो घायल नागरिकों के बेहतर प्राथमिक उपचार का पूर्ण दायित्व नर्सों पर होते हैं। ये अन्य चिकित्सा विशेषज्ञों के साथ समन्वय करके मरीजों को बेहतर इलाज करते हैं।

त्रासदी के बाद नर्स रोगियों के चोटों, बीमारियों या अन्य समस्याओं की गंभीरता का आकलन करके सही दवाई समय पर उपलब्ध कराते है। त्रासदियों के समय अक्सर हस्पताल जैसे सुविधाएँ मिलना तक़रीबन असंभव हो जाता है।

क्योंकि मरीजों की संख्या बढ़ने से अस्थायी टेंट बनाकर मरीजों का उपचार किया जाता है। इन टेंटों में हस्पताल जैसे सुविधाएँ नही मिलते है, इसलिए नर्सें बदलती परिस्थितियों में जल्दी से समायोजित करने की सामर्थ्य रखते हैं।


10. एनजीओ ( गैर-सरकारी संगठन ) की भूमिका आपदा प्रबंधन में

आपदा गुजर जाने के बाद अपने साथ ढेर सारा मलबा छोड़कर जाता है। एनजीओ के सेवाकर्मी पीड़ित परिवारों के घरों की साफ़-सफाई करके पुनर्वास में मदद करते हैं।

कई बार सरकार के पास भी पर्याप्त संसाधन नही होते है कि वे सभी आपदा प्रभावित पीड़ितों के जरूरतों को पूरा कर पायें। फलस्वरूप, इन हालातों में एनजीओ की भूमिका बहुत बढ़ जाता है।

एनजीओ के माध्यम से चंदा इकट्ठा करने में आसानी होता है, क्योंकि लोगों को इन संस्थानों पर भरोसा होता है कि, वे पैसों का दुरुपयोग नही करेंगे। नही तो आपदाओं के समय कई लोग पीड़ितों का बहाना बनाकर चंदा इकट्ठा करते हैं।

सरकारी कार्यों में कई बार राहत कार्यों में देरी भी हो जाते है, लेकिन गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) संसाधनों को तेजी से जुटाने और महत्वपूर्ण सेवाएं प्रदान करने की क्षमता के कारण आपदा राहत कार्यों में विशेष भूमिका निभाते हैं।

11. उपसंहार

आपदाएं ना तो निर्धारित समय पर आते हैं, और ना ही हम इनका पुर्वानुमान लगा सकते है। परन्तु जब भी आते हैं, वे महाविनाशक बनकर हमपर टूट पड़ते है।

इसलिए इनसे होने वाले भरी तबाही को कम करने के लिए कुछ सुरक्षात्मक उपाय अपनाए जाते है, जिसका अध्ययन आपदा प्रबंधन योजना के अंतर्गत करते है।

इस योजना में संभावित जोखिमों और खतरों का आकलन करना, आपातकालीन परिस्थतियों के लिए तत्पर रहना, प्रशिक्षण प्रदान करना, पुनर्वास, राहत शिविर जैसे कई योजनायें शामिल है।

इन कदमों को उठाने से जनसमुदाय, के जीवन और संपत्ति की रक्षा कर पाना संभव हुआ हैं। हालांकि इन प्रबंधनों का सफलता सरकारी एजेंसियों, गैर-सरकारी संगठनों और आम जनता सहित कई हितधारक लोगों के सामूहिक प्रयासों से ही संभव है।

तभी हम बेहतर आपदा प्रबंधन योजना बनाकर प्राकृतिक आपदाओं के नुकसान को ओर कम कर सकते हैं।

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