एकता का महत्व पर निबंध | परिचय, चुनौतियां, उदाहरण, निष्कर्ष

आपने बचपन में वो कहानी जरुर सुने होंगे, जिसमें एक किसान के चारों पुत्रों में हमेशा ही मतभेद रहता था। वे कभी भी मेलजोल में नही रहते थे। अपने बच्चों को एकता का महत्व सिखाने के लिए, किसान पिता ने गज़ब तरकीब लगाया।



एक दिन किसान ने अपने चारों पुत्रों को पास बुलाकर सबको एक-एक लकड़ी दिया, और उन लकड़ियों को तोड़ने को कहा। पतली लकड़ी होने के कारण सभी पुत्रों ने बारी-बारी से सभी को आसानी से तोड़ दिया।

अबकी बार किसान ने सबको लकड़ी का बंडल पकड़ाया और पुनः तोड़ने को कहा, परंतु इसबार किसी से भी लकड़ी का बंडल नही टुटा। इस बार किसान पुत्रों को पिता के इरादे का अंदाजा हो चुका था।

उन्हें एकता का महत्व समझ आ चुका था और उन्हें अपने कुकर्मों पर पछतावा हुआ।परंतु इस दिन से आपस में वादा किये कि, अब से वे सदा ही साथ रहेंगे और एक दुसरे का हमेशा ख्याल रखेंगे।

नमस्कार साथियों, आज के इस लेख में हमारे जीवन में एकता के महत्व की उपयोगिता के विभिन्न पहलुओं पर विस्तार से चर्चा किया जायेगा। आपसे आग्रह है कि पुरे लेख को पढ़कर अपना विचार अंत में जरुर रखियेगा।

1. परिचय

एकता लोगों के सामुहिक समर्थन का प्रतीक है। यह एक ऐसा बंधन है, जिसमें लोग सामुदायिक सहयोग की भावना से एकदुसरे से जुड़ते है। इसका स्वरुप कई तरह के होते है, जैसे, धार्मिक, सामजिक, जातिगत, राजनैतिक, सैन्य, शैक्षणिक…इत्यादि।

जब हम किसी से कोई रिश्ता जोड़ने का प्रयास करते है, तो उसका दूसरा पहलु यह भी होता है कि हम उनके साथ सामुहिक तौर पर जुड़ने की इच्छा बनाते है। एकता में हम दूसरों के साथ संबंध बनाने और खुद से बड़ी किसी चीज़ का हिस्सा बनने का प्रयास करते हैं।

वर्तमान समय के मौजूदा परिस्थितियों पर गौर फरमाएं, तो समय के साथ राजनीतिक तनाव, सामाजिक असमानता और धार्मिक संघर्ष जैसे कई समस्याओं बढ़ते जा रहें है, जिसके वजह से एकता का महत्व पहले से कहीं आवश्यक होने लगा है।

ऐसे असामान्य हालातों से निपटने के लिए हमें एक मंच पर साथ मिलकर सबके पक्ष को समझना होगा। ताकि कम से कम पक्षपात करके एक संतुलित एवं माध्यम मार्ग अपनाकर सबके हितों का सम्मान हो।

ताकि बिखरे हुए लोगों को एकजुट करके एकता के बंधन में बांधा जा सके।मिलजुल कर रहने की आवश्यकता सबको है। समाज के सबसे छोटे इकाई परिवार से लेकर सबसे बड़े देशों तक, सबको अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए एकजुट होकर काम करने की आवश्यकता है।


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2. एकता के प्रकार

जैसे कि हमने ऊपर संक्षेप में चर्चा किया कि, एकता के प्रकार विभिन्न आधारों पर भिन्न-भिन्न होते हैं। परंतु जो सबसे प्रमुख एवं प्रचलित है उन्हीं पर मुख्य रूप से चर्चा करेंगे, जैसे कि राजनीतिक एकता, सामाजिक एकता, धार्मिक एकता और राष्ट्रीय एकता आदि।

2a. राजनीतिक एकता

राजनीतिक एकता का उद्देश्य विभिन्न वैचारिक समूह के लोगों को राष्ट्रीय विकास के लिए अथवा विरोधी पार्टी को सत्ता की लड़ाई में चुनौती देने के लिए एकजुट करने के मकसद से होता है।

जब कोई नेता अपना नयी पार्टी बनाने की कोशिश करता है तो वह लोगों को एकजुट करने की कोशिश में लगे रहता है। ठीक उसी प्रकार जब किसी पार्टी का चुनाव में अधिक दबदबा कायम रहता है, उस पार्टी को हर्राने के लिए, बाकी सभी छोटे-छोटे क्षेत्रीय दल गोलबंद होने लगते हैं।

2b. सामाजिक एकता

इसका उद्देश्य विभिन्न सामाजिक पृष्ठभूमि के लोगों के बीच सहयोग और भाईचारे का वातावरण बनाने पर केंद्रित है। उदहारण के तौर पर अनाथ बच्चों के मदद के लिए, गरीबों के मदद के लिए, अन्याय पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए, पशुओं की मदद के लिए, जितने भी संगठन बने हैं, उनका मुख्य उद्देश्य सामाजिक समानता को बढ़ावा देना है।

2c. धार्मिक एकता

इसका उद्देश्य किसी विशेष धार्मिक मान्यताओं को मानने वाले लोगों को एक साथ लाने का एक शक्तिशाली साधन है। जैसे हिन्दुओं के लिए अलग, सिख लोगों के लिए अलग, मुस्लिमों के लिए अलग, विभिन्न आदिवासी समाज के लोगों के लिए अलग-अलग होते हैं।

2d. राष्ट्रीय एकता

अंत में, राष्ट्रीय एकता एक ऐसा सामुहिक समर्थन का प्रतीक है जो किसी भी देश के प्रत्येक नागरिकों को राष्ट्र की भलाई और विकास के लिए एक साथ जोड़ता है। यह धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक सोच से भी बढ़कर है।

यह राष्ट्रीय अखंडता का प्रतीक है जो उस क्षेत्र में निवास करने वाले सभी लोगों को पूरब से पश्चिम, तथा उत्तर से दक्षिण तक एक धारणा से जोड़े रखता है। आपका रंग, हैसियत, जाति, पेशा, पुरुष है या महिला या फिर कोई अन्य ही क्यों ना हो… राष्ट्रीय एकता में कोई विभेद नही किया जाता है।


3. एकता के लाभ

जब लोग सामंजस्यपूर्ण साथ मिलकर काम करते हैं, तो सामूहिक लक्ष्यों के पूरा होने की संभावना अधिक होती हैं। क्योंकि सामूहिक तौर पर काम करने पर विभिन्न क्षमताओं और योग्यताओं से सक्षम ज्ञान का समावेशन होता है।

ऐसे में हमें एक दुसरे का भरपूर सहयोग मिलता है, जो कठिन कार्य के समय बहुत आवश्यक हैं। इससे असफलताओं से वापसी करने में आसान हैं क्योंकि समूह के सभी सदस्य को एक दूसरे से प्रोत्साहन मिलता हैं।

जब लोग एक साथ आते हैं, तो उनके विविध दृष्टिकोणों को मिलाकर समस्याओं को हल करने और निर्णय लेने में बेहतर परिणाम प्राप्त होते हैं। परिणामस्वरूप हमारी उत्पादकता बढ़ती है। सामंजस्य से हमारे सामाजिक चिंताओं को संबोधित करने और जनमत को आकार देने की क्षमता में बढ़ोतरी होता है।

उदहारण के लिए बढ़ी हुई समृद्ध व्यापार, निवेश , उद्योगों आदि समुदायों के बीच सहयोग में वृद्धि का परिणाम ही हैं। इससे लोगों को एकता की क्षमता का एहसास होता है।

सामूहिक तौर पर काम करने से ग्रुप के प्रत्येक व्यक्ति के निजी और पेशेवर जीवन में सीखने और आगे बढ़ने की क्षमता और इच्छा बहुत प्रबल होता है। एकता के कारण खुले संचार को विस्तार मिलता है, जो बदले में नए विचारधारा को बढ़ावा देती है।

साथ ही यह लोकतान्त्रिक व्यवस्था में सहयोग और समझ को बेहतर बनती है, जो सामाजिक सामंजस्य को बढ़ाकर आपसी तनाव को भी कम करती है, जिससे समाज में शांति और स्थिरता का निर्माण होता है।


4. एकता प्राप्त करने में चुनौतियां

हमनें ऊपर एकता की ताकत के बारे में जाना, पर क्या आपको लगता है कि संगठन बनाना इतना ही आसान है।।! जी बिलकुल भी नही। अगर होता तो कई लोग अपने बड़ी-बड़ी राजनीतिक पार्टियाँ बना लेते। वे लोग किसी दुसरे पार्टी की मदद क्यों लेते। अगर किसी व्यक्ति को सामजिक मुद्दों पर को लोगों का समर्थन जरुरत होता है तो भी उन्हें कई मिन्नतों के वाबजूद समर्थन नही प्राप्त होता है। चलिए इन्ही कारणों को जानते हैं:-

4a. सांस्कृतिक विविधता

यह दुनिया विभिन्न धर्मों, रीतिरिवाजों, संस्कृति को मानने वाले लोग से भरा है, जिसके कारण सबके शिक्षा-दीक्षा, विचारधारा, लालनपालन में विविधता साफ़ नजर पड़ता हैं। जब इन सभी विविधताओं से परिपूर्ण लोगों को जब किसी विशेष उद्देश्य के लिए एक सूत्र में बंधने की कोशिश की जाती है, तो कठिनाई होना निश्चित है। कई अपना सहमति जताता है तो कोई अपना असहमति जताएगा।

4b. भाषाई समस्या

भाषा सद्भाव की कुंजी है और लोगों को आपस में जोड़ता है। लेकिन लोग तब अधिक सशक्त तरीके से जुड़ते है, जब दोनों लोगों की संवाद निर्बाध तरीके से हो। मेरे कहने का मतलब है कि दोनों एक ही भाषा में वार्तालाप करें, या फिर दोनों को ही एक-दुसरे के भाषा की बेहतर समझ होना चाहिए। तभी एक-दुसरे के सहयोग कर सकेंगे। इसलिए भाषाई बाधाएं, संवाद में चुनौती का कारण बनता हैं। इस अंतर को भाषायी अध्ययन को बढ़ावा देकर और अनुवाद सेवाओं की पेशकश करके दूर किया जा सकता है।

4c. आर्थिक असमानता

आर्थिक असमानता भी सहयोग के बंधन को कमजोर करता है। उदहारण के लिए, अगर कृषक वर्ग अपने हक के लिए आंदोलित हैं तो कृषकों को ना तो कभी डॉक्टर्स से, ना ही बिजनेसमैन से, और ना ही इंजिनियर से सहयोग मिलेगा। इसलिए किसी भी संगठन को समर्थन अधिकतर अपने वर्ग के लोगों से ही मिलता है। हाँ, कभीकभार सहायता जरुर मिलेगा, परंतु पूरी तरह नही।

4d. मीडिया का प्रभाव

कई बार मीडियाकर्मियों द्वारा किसी संगठन के प्रति अखबारों, टेलीविज़न द्वारा झूठी सनसनीखेज जानकारियां और पूर्वाग्रहपूर्ण रिपोर्टिंग प्रसारित किया जाते हैं। इससे संगठन की एकता कमजोर होता है। नतीजन आमलोगों से समर्थन के बजाय उन्हें विरोध का सामना करना पड़ता है। एक जिम्मेदार पत्रकार को भी इन पहलुओं की ओर ध्यान देना चाहिए, क्योंकि इसके वजह से किसी को अपने हक से वंचित होना पड़ता है।

4e. अतीत से मतभेद

अगर किसी संगठन को अतीत में एकीकृत करते वक़्त कोई अनसुलझे तनाव हुए हो, तो इसका प्रभाव वर्तमान में भी देखने मिलेगा। इसीलिए संगठन में जब भी कोई आपसी मतभेद हो या यथासंभव त्वरित मतभेदों को सुलझा लेना चाहिए। इससे भविष्य में संगठन को एकजुट करने में कोई बाधा नही होता है।

4f. खराब नेतृत्व

संगठन की दिशा-दशा किस ओर जायेगा, यह उस संगठन को मार्गदर्शन करने वाले मुखिया पर निर्भर करता है। मुखिया जो अपने सदस्यों को रास्ता दिखायेगा, सभी उसी रास्ते चलेंगे। इसलिए संगठनों के सभी स्तरों पर ऐसे नेताओं को ही प्रोत्साहित करना चाहिए, जिनका नैतिकता और दूरदर्शीता औरों के मुकाबले बेहतर हों। जिसके नेतृत्व में सामाजिक सामंजस्य बढ़ता हो।

4g. पीढ़ीगत अंतर

अलग-अलग उम्र के लोगों के पास अक्सर अलग विश्वदृष्टि और मूल्यों होते हैं। पीढ़ियों के बीच की खाई को पाटना और एकता को मजबूत करने के लिए, अंतर-पीढ़ीगत संवाद को सुविधाजनक और सहयोगात्मक बनाना होगा।


5. एकता के उदहारण

1. 1947 में ब्रिटिश नियंत्रण से देश को स्वतंत्र करने के लिए स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान सभी भारतीय लोग, बिना किसी भेदभाव के एकजुट हुए थे।

2. भारतीय राष्ट्रीय ध्वज, हमारे राष्ट्रीय गौरव और एकजुटता का प्रतीक है। इस तिरंगे के रंगों में, केसरिया बहादुरी का प्रतिनिधित्व करता है, सफेद शांति का प्रतिनिधित्व करता है, और हरा उर्वरता का प्रतिनिधित्व करता है। केंद्रीय अशोक चक्र सद्भाव का प्रतिनिधित्व करता है।

3. भारत देश में विभिन्न प्रथाओं, भाषाओं, सांस्कृतिक और धार्मिक मान्यताओं के लोग बसते है। परंतु इतने विविधताओं के बावजूद हम सभी भारतीय लोग दिवाली, ईद, क्रिसमस और बैसाखी जैसे त्योहारों को भाईचारे और शांति की भावना से एक साथ मनाते हैं।

4. रवींद्रनाथ टैगोर का “जन गण मन”, भारतीय राष्ट्रगान, देश की विविध आबादी को एकजुट करता है और राष्ट्रीय गौरव के स्रोत के रूप में कार्य करता है। संगीत के माध्यम से लोगों को एक साथ लाने के लिए इसे देश भर में कई अलग-अलग भाषाओं में प्रस्तुत किया जाता है।

5. क्रिकेट, हॉकी और कबड्डी भारत में अपनी व्यापक लोकप्रियता के कारण राष्ट्रीय एकीकरणकर्ता हैं। अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में राष्ट्रीय टीमों के लिए दिखाए गए उत्साहपूर्ण समर्थन से राष्ट्रीय एकता की भावना मजबूत होती है।

6. चिपको आंदोलन, नर्मदा बचाओ आंदोलन और भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन भारत में सामाजिक आंदोलनों के कुछ उदाहरण हैं जिन्होंने लोगों एकजुट किया। देश भर के लोग बाढ़, भूकंप और चक्रवात जैसी विनाशकारी घटनाओं के बाद जरूरतमंद शरणार्थियों की मदद करने के लिए एक साथ आते हैं।

7. समाज सेवा ऐसे तरीके हैं जिनसे भारतीय संकट के समय एक-दूसरे की मदद करने के लिए जुटते हैं। लोग रक्त अभियान और सामुदायिक सुधार परियोजनाओं जैसी गतिविधियों के माध्यम से समुदाय की सहायता करने और सामंजस्य को बढ़ावा देने के लिए एक साथ आते हैं।


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6. निष्कर्ष

वर्तमान समय पर समाज में फैले अराजकता के माहौल में एकता का महत्व पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो चुका है। आपसी सामंजस्य, शांति व्यवस्था ही सामाजिक प्रगति और आर्थिक विकास प्राप्त करने में सहयोग प्रदान करेगा।

संयुक्त सहयोग का लाभ ना केवल राष्ट्रीय या वैश्विक प्रयासों तक ही सीमित होता है, बल्कि इसका सकारात्मक प्रभाव समाज के प्रत्येक वर्ग को होता हैं।

इसके लिए हम सभी को एक साथ आगे आकर अविश्वास, वैचारिक मतभेद, विभिन्न विश्व दृष्टिकोण, और अलगाववाद को दूर करने की आवश्यकता है। इन बाधाओं को बेहतर विचारविमर्श, एक दूसरे को क्षमा करके और सहानुभूति की सहायता से हल किया जाना संभव है।

एकीकरण ही एकमात्र आवश्यक सकारात्मक सामाजिक परिवर्तन लाने की कुंजी है। शांति का मार्ग सुगम नहीं हो सकता है, लेकिन दुनिया के नागरिकों के रूप में हमारा ही जिम्मेदारी है कि हम समन्वित कार्रवाई के माध्यम से वैश्विक सद्भाव बनाने की पहल के साथ आगे बढ़ें।

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