चुनाव लोकतांत्रिक समाजों के ताने-बाने का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, क्योंकि यह देश के प्रति जनता द्वारा विचारणीय निर्णय एवं लोगों के इच्छाशक्ति को दर्शाता है।
यह एक उच्च-दांव वाले उथल-पुथल की तरह हैं, जिसमें उम्मीदवार देश का नेतृत्व करने, प्रतिनिधित्व करने और अपने नयी पहचान प्रदान करने के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं।
1. परिचय
चुनाव का आयोजन देश के संवैधानिक पदों पर योग्य जनप्रतिनिधि को चुनने के लिए किया जाता है, ताकि देश का भविष्य का बागडोर एक बेहतर प्रतिनिधि के पास हो।
यह एक ऐसा आयोजन है जो देशों की राह बदल सकता है और साथ में लोगों को रोमांचक अनुभव देता है। परंतु चुनाव का आयोजन करना इतना भी सरल नही है।
निर्वाचन प्रक्रिया पर कई प्रकार के बाधाएं उत्पन्न होते हैं, जैसे कि राजनीति का अपराधीकरण, धन और बाहुबल का उपयोग…आदि। इन बाधाओं से सामना करते हुए स्वतंत्र और निष्पक्ष मतदान कराना अपनेआप में एक चुनौती है।
आज आप इन्हीं विषय से सम्बंधित जानकारियों को पाएंगे, जिसमें चुनावों के प्रकार, चुनावी प्रक्रिया, राजनीतिक दल, चुनावों में चुनौतियाँ और कई चर्चाएं शामिल होंगे।
2. चुनावों के प्रकार
भारत के गतिशील लोकतंत्र में, मतदाता अलग-अलग प्रकार के चुनावों प्रक्रियाओं में हिस्सा बनकर निर्णायक भूमिका निभाते हैं। भारतीय संविधान में हमारे संसदीय चुनावों के राष्ट्रीय महत्व से लेकर स्थानीय निकाय चुनावों की स्थानीय प्रासंगिकता तक, अलग-अलग प्रावधान बनाये गये हैं।
इसलिए शासन के विभिन्न स्तरों पर नेताओं और प्रतिनिधियों का चुनाव करने के लिए विभिन्न प्रकार के निर्वाचन होते हैं।
2a. लोकसभा चुनाव
लोकसभा चुनाव भारतीय लोकतंत्र का सबसे बड़ा निर्वाचन प्रक्रिया है। इसे आम चुनाव नाम से भी जाना जाता है, जो प्रत्येक पांच साल अंतराल आयोजित होते हैं। इसमें लोकसभा सदस्यों यानी सत्तारूढ़ पार्टी को, देश के प्रमुख नीति निर्माताओं के तौर पर चुना जाता है।
इस चुनाव प्रक्रिया भारत के हर व्यस्क उम्मीदवार जनता मतदान करके, सत्तारूढ़ पार्टी यानी लोकसभा सदस्यों को, जो अगले पांच साल के लिए देश के प्रमुख नीति निर्माताओं के तौर पर बागडोर संभालेंगे।
2b. राज्यसभा चुनाव
राज्यसभा का कभी भी विघटन नही हो सकता है, क्योंकि यह एक स्थायी सदन है। राज्यसभा प्रतिनिधियों का निर्वाचन प्रक्रिया में सिर्फ राज्य विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य ही भाग ले सकते हैं।
2c. राष्ट्रपति चुनाव
भारत के राष्ट्रपति का चुनाव एक निर्वाचक मंडल द्वारा किया जाता है जिसमें संसद के दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) तथा राज्यों की विधान सभाओं के सदस्य मतदाता होते हैं। प्रत्येक निर्वाचन के बाद राष्ट्रपति का कार्यकाल पांच साल का होता है।
2d. उप-राष्ट्रपति चुनाव
भारतीय उपराष्ट्रपति निर्वाचन प्रक्रिया भी एक निर्वाचक मंडल द्वारा ही किया जाता है जिसमें संसद के दोनों सदनों के सदस्य शामिल होते हैं। निर्वाचन के पश्चात उपराष्ट्रपति अगले पांच साल तक पदभार ग्रहण करते है।
2e. विधानसभा चुनाव
राज्य विधानसभा सदस्यों का निर्वाचन हर पांच साल अंतराल में होते हैं। विधानसभा सदस्यों को विधायक कहते है।
2f. उपचुनाव
जब किसी लोकसभा, राज्यसभा या स्थानीय निकाय क्षेत्र में उस निर्वाचित सदस्य का कार्यकाल समय सीमा से पहले ही समाप्त हो जाये, तब ऐसी परिस्थितियों में उपचुनाव करायें जाते हैं।
उस निर्वाचित सीट के खाली होने के कई कारण हो सकते हैं, जैसे कि निर्वाचित सदस्य की मृत्यु या स्वयं इस्तीफे दे देना…आदि। निर्वाचन आयोग इसी खाली सीट को भरने के लिए ये निर्वाचन करवाता है।
2g. स्थानीय चुनाव
सरकार द्वारा चलाये जा रहे सभी योजनाओं का लाभ, विधिवत तरीके से जन-जन तक पहुंचे, इसलिए स्थानीय प्रशासनिक इकाइयों का बनाया गया।
पंचायत, नगर निगम, नगरपालिका, नगर-परिषद् आदि वैसे ही स्थानीय प्रशासनिक निकाय है, जो आम जनता और सरकार को जोड़ने में सेतु की भूमिका निभाता है।
यह स्थानीय प्रशासनिक इकाई जनता की आवाज बनकर सरकार के प्रति बेहतर जवाबदेही सुनिश्चित करें, इसके लिए उपयुक्त उम्मीदवार भी होना जरुरी है।
इसलिए बेहतर जनप्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए स्थानीय चुनाव कराए जाते हैं। ये निर्वाचन इसलिए भी महत्वपूर्ण हैं क्योंकि ये प्रतिनिधि जनता के बीच रहकर इनके स्थानीय स्तर के मुद्दों एवं समस्याओं की आवाज बनकर सरकार तक पहुंचाते हैं।
अतः हम कह सकते हैं कि, भिन्न-भिन्न निर्वाचनों स्तरों के विभिन्न उद्देश्य होते हैं और सभी स्तरों पर लोकतंत्र सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक हैं।
3. चुनावी प्रक्रिया
चुनावी प्रक्रिया को स्वतंत्र और निष्पक्ष तरीके से अंजाम देना काफी मुश्किल जिम्मेदारी होता है। इन सभी कार्यों का दायित्व भारतीय निर्वाचन आयोग पर होता है। इसके लिए प्रशासन पुरे मुस्तेदी से काम करते हैं। यह चुनाव प्रक्रिया निम्न है।
3a. मतदाता पंजीकरण
निर्वाचन प्रक्रिया शुरू करने से पहले मतदाताओं का नाम वोटर सूची में जोड़ना अनिवार्य प्रक्रिया है। क्योंकि यह सुनिश्चित करता है कि पात्र नागरिकों को अपने मतदान के अधिकार का प्रयोग करने का अवसर मिले।
इसके अलावा मतदाता पंजीकृत होने से चुनाव में होने वाले मतदाता धोखाधड़ी को रोकने में बहुत मदद होता है। भारत के नागरिकों को मतदाता में पंजीकृत होना के लिए, उसकी उम्र अठारह वर्ष से अधिक एवं भारत का नागरिक होना अनिवार्य है।
3b. चुनाव प्रचार
जनप्रतिनिधि मतदाताओं से जुड़ने के लिए चुनाव अभियान करते हैं। इन अभियानों में सार्वजनिक रैलियां, विज्ञापन, सोशल मीडिया अभियान, डोर-टू-डोर प्रचार और कई रणनीतियां उपयोग होते हैं।
कई जनप्रतिनिधि अपने चुनाव प्रसार में गाने रिलीज़ करवाते है। इन प्रचार माध्यमों का मुख्य उद्देश्य पार्टी के मेनिफेस्टो के अनुरूप नीतिगत प्रस्तावों और देश के लिए उनके दृष्टिकोण को उजागर करके अपने पार्टी के लिए जनता का बहुमत हासिल करना है।
3c. मतदान प्रक्रिया
भारत में मतदान प्रक्रिया का निर्धारण चुनाव के प्रकार पर निर्भर करता है, जैसे कि हमने ऊपर चर्चा किया। उदहारण के लिए लोकसभा निर्वाचन प्रक्रिया, राष्ट्रपति निर्वाचन प्रक्रिया से काफी भिन्न है। ठीक वैसे ही स्थानीय निकाय का चुनाव और विधानसभा चुनाव में भी अंतर पाए जाते हैं।
3d. मतदान का दिन
मतदान के दिन सार्वजनिक अवकाश की घोषणा होती है। मतदान केन्द्रों के स्थापना सरकारी स्कूलों, कॉलेजों, दफ्तरों में होता है। इसके प्रबंधन का सम्पूर्ण दायित्व निर्वाचन अधिकारी पर होता हैं। हर स्तर पर अलग-अलग निर्वाचन अधिकारी तैनात होते हैं।
इस दिन कोई अनुचित घटना होने के संभावनाओं को रोकने के लिए प्रशासन पूरी तरह मुस्तैद रहता है। पर्यवेक्षक मतदाता के मतपत्र की गोपनीयता को सुनिश्चित करने के लिए चुनावी प्रक्रिया में स्वतंत्रता और निष्पक्षता के लिए निगरानी रखते हैं।
3e. वोटिंग गणना
मतदान के अंत में सारे मतपत्रों को एकत्रित करके, मतदानकर्मी वोटों की गिनती शुरू करते हैं। जिस राजनैतिक दल को अधिक संख्या में वोट मिलते हैं, वही विजेता घोषित किया जाता है।
4. राजनीतिक दल
भारत की चुनावी प्रक्रिया में अधिकतर राजनीतिक दल ही हिस्सा लेते हैं। हालाँकि नियमों के अनुरूप जिसका कोई राजनैतिक दल नही है वह निर्दलीय टिकट लेकर भी अपने आप को प्रतिनिधि खड़ा कर सकता है।
लेकिन निर्दलीय टिकट से चुनाव लड़ने पर जनता का बहुमत हासिल कर पाना बहुत मुश्किल होता है। इसीलिए अधिकतर लोग राजनीतिक दल का हिस्सा बन जाते हैं। इससे उन्हें अपने पहचान बनाना काफी आसान होता है।
राजनीतिक दल लोकतांत्रिक प्रक्रिया की संरचना में मदद करते हैं और लोगों को उनके हितों का प्रतिनिधित्व करने वाले उम्मीदवारों को वोट देने का विकल्प देते हैं।
प्रत्येक राजनीतिक पार्टी के अपने विचारधाराएँ होती हैं जो उनके समग्र आचरण, विश्वासों, नीतियों और संगठन को परिभाषित करती हैं। कोई पार्टी समाजवाद विचारधारा, तो कोई पूंजीवाद, तो कोई क्षेत्रवाद से लेकर अन्य धार्मिक या जातीय-आधारित विचारधाराओं से जुड़े है।
भारत में राजनीतिक दल बनाने के लिए राष्ट्रीय निर्वाचन आयोग द्वारा बनाए गये अनिवार्य मानदंडों का पालन करना आवश्यक है।
अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, बहुजन समाज पार्टी आदि कुछ राष्ट्रीय दल के उदहारण है।
आम आदमी पार्टी, झारखंड मुक्ति मोर्चा, द्रविड़ मुनेत्र कड़गम, समाजवादी पार्टी, शिवसेना आदि कुछ क्षेत्रीय दल के उदहारण है।
5. भारतीय निर्वाचन आयोग
भारतीय निर्वाचन आयोग (ECI) एक स्वतंत्र निकाय है जो भारत में मतदाता के पंजीयन से लेकर चुनावी मैदान तक के सभी कामों की देखरेख और प्रबंधन करता है। इसकी स्थापना 1950 में संविधान के प्रावधानों के तहत की गई थी।
भारतीय निर्वाचन आयोग अपने व्यापक क्षेत्राधिकार का उपयोग स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने, आदर्श आचार संहिता लागू करने से लेकर सभी राजनीतिक दलों के लिए समान अवसर भी प्रदान कराता है। निर्वाचन आयोग को अपने कर्तव्यों को पूरा करने में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
इनमें कुछ चुनौतियां निम्न है :- चुनाव के दौरान धन और बाहुबल का इस्तेमाल, जातिगत आधार पर वोट बैंक बनवाना, बूथ कैप्चर को रोकना, कालेधन के प्रयोग पर कड़ी निगरानी करना, चुनावी आचार संहिता के पालन करवाना…आदि।
इसके बावजूद, ईसीआई ने काफी सराहनीय काम किया है।
5a.भारत के चुनाव आयोग के मुख्य कार्य
- राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, संसद, राज्य विधानसभाओं और स्थानीय निकायों के लिए चुनाव कराना।
- निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन करना, जिसमें चुनावी क्षेत्रों में भौगोलिक क्षेत्रों का विभाजन और आवंटन कराना।
- निर्वाचक अधिकारियों, सुरक्षा कर्मियों की तैनाती और निर्वाचन सामग्री के वितरण सहित मतदान केंद्रों की स्थापना और प्रबंधन कराना।
- इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) के उपयोग और रखरखाव को सुनिश्चित करना, जिसने मतदान प्रक्रिया अधिक सुव्यवस्थित हो एवं चुनावी धोखाधड़ी कम हो।
- विभिन्न चुनावों के लिए कार्यक्रम निर्धारित करना, जिसमें नामांकन, मतदान और परिणाम की घोषणा की तारीखों की घोषणा शामिल है।
- कदाचार मुक्त निर्वाचन के लिए, चुनावी विवादों संबंधी शिकायतों पर सुनवाई करने के लिए एक न्यायिक प्राधिकरण के रूप में कार्य करना।
- राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों को निर्वाचन के दौरान आदर्श आचार संहिता का पालन करवाना और कदाचार को रोकना।
- भ्रष्टाचार को रोकने के लिए निर्वाचन के दौरान राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के खर्च को नियंत्रित और निगरानी करना।
- मतदाता शिक्षा और जागरूकता कार्यक्रम आयोजित कराना…आदि।
6. चुनाव घोषणापत्र
जैसे-जैसे निर्वाचन का समय निकट आने लगता वैसे-वैसे राजनीतिक पार्टियाँ भी अपना घोषणा पत्र जारी करने लगते हैं। इन घोषणापत्रों में राजनीतिक दलों द्वारा भविष्य में किये जाने वाले वायदों का लेखा-जोखा रहता है।
यह एक प्रकार का दस्तावेज होते हैं, जिसमें पार्टी के एजेंडे, लक्ष्यों, नीतियों का एक प्रारूप होता है। घोषणापत्र के वायदों में आर्थिक नीतियाँ, सामाजिक कल्याण से लेकर पर्यावरणीय मुद्दों और रक्षा रणनीतियों तक हो सकते हैं।
इन घोषणापत्र का महत्व राजनीतिक दलों को उनके वादों के प्रति जवाबदेह ठहराया जाता है।
परन्तु घोषणापत्र के अनुरूप काम ना कर पाने के परिस्थिति में अक्सर, पार्टियां अपर्याप्त संसाधनों या परिस्थितियों में बदलाव का हवाला देकर अपने वादों से पीछे हट जाते हैं। इसलिए, घोषणापत्रों को अक्सर आलोचना का विषय बन जाते हैं।
7. भारतीय चुनावों के सामने चुनौतियाँ
भारत जैसे जटिल विविधता वाले देश के निर्वाचन प्रक्रिया पर दुनियाभर की कड़ी नजर रहता है। ऐसा इसलिए क्योंकि इतने बड़े जनसंख्या वाले देश में लोकतांत्रिक तरीके से निर्वाचन करना बहुत बड़ी चुनौती है। आईये इन चुनौतियों को समझते हैं।
7a. अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा
आज भी भारत में कई सुदूरवर्ती क्षेत्रों में बुनियादी ढाँचे जैसे सड़क, बिजली और संचार सुविधाएं अनुपलब्ध है। इससे सुदूरवर्ती क्षेत्रों में मतदान केंद्रों की स्थापना करना और चुनाव सामग्री का समय पर वितरण सुनिश्चित करने में बाधा आती है।
7b. सुरक्षा चिंताएं
निर्वाचन के दौरान चरमपंथी समूहों और अलगाववादी आंदोलन अधिक खतरा बन जाते है। ऐसे में संघर्ष प्रभावित क्षेत्रों में मतदाताओं और चुनाव अधिकारियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए व्यापक सुरक्षा व्यवस्था की आवश्यकता है।
7c. धन और बाहुबल का प्रभाव
चुनावों में धन और बाहुबल की भूमिका एक सतत चुनौती बनी हुई है। प्रभावशाली व्यक्तियों के साथ कनेक्शन वाले उम्मीदवारों अक्सर इन संबंधों का गलत उपयोग करते है।
7d. चुनावी दुष्प्रचार
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के माध्यम से विरोधी पार्टी के मीडिया सेल नकली समाचार और गलत सूचनाओं का प्रचार-प्रसार करते है। ऐसा करने का मुख्य उद्देश्य पार्टी के छवि को नुकसान पहुँचाना होता है।
7e. कदाचार मुक्त चुनाव
चुनावी कदाचार, जैसे बूथ कैप्चरिंग, मतदाता प्रतिरूपण और रिश्वतखोरी, को रोकना निर्वाचन आयोग के लिए आज भी काफी कठिन कार्य है। अधिकारियों को निष्पक्ष चुनावी माहौल बनाए रखने के लिए मजबूत कानून बनाने की आवश्यकता है।
8. निष्कर्ष
देश की विशालता, विविधता और सामाजिक जटिलताओं के कारण भारतीय चुनाव कई चुनौतियों का सामना करते हैं। इन चुनौतियों पर काबू पाने के लिए सरकार, चुनावी अधिकारियों, सामाजिक संगठनें और बड़े पैमाने पर नागरिकों के निरंतर प्रयासों की आवश्यकता है। इन चुनौतियों का समाधान करके, ही भारत अपनी लोकतांत्रिक नींव को अधिक मजबूत कराने की दिशा में प्रयास कर रहा है।
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